Forest law
Kerala Tables Landmark Bill to Amend Wildlife Protection Act, Sparks Legal and Conservation Debate

माकपा के नेतृत्व वाली Kerala सरकार ने राज्य विधानसभा में वन्यजीव संरक्षण (केरल संशोधन) विधेयक, 2025 पेश किया है, जिससे केरल वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन का प्रयास करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है।
मसौदा विधेयक के प्रमुख प्रावधान:
- धारा 62 संशोधन: राज्य सरकार अनुसूची-II के वन्य जीवों को सीमित अवधि के लिए नाशक जीव घोषित कर सकती है (वर्तमान में केवल केंद्र सरकार के पास यह अधिकार है)।
- धारा 11 संशोधन: मुख्य वन्यजीव वार्डन (CWW) को मनुष्यों पर हमला करने/घायल करने वाले या मानव बस्तियों में प्रवेश करने वाले वन्य जीवों को मारने, बेहोश करने, पकड़ने या स्थानांतरित करने का आदेश देने का अधिकार दिया गया है।
- जनसंख्या नियंत्रण: CWW खतरनाक मानी जाने वाली अनुसूची-II प्रजातियों के स्थानांतरण या जन्म-नियंत्रण उपायों को मंजूरी दे सकता है।
- प्रजाति पुनर्वर्गीकरण: आवासीय क्षेत्रों से स्थानांतरण की अनुमति देने के लिए बोनट मैकाक को अनुसूची-I से अनुसूची-II में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव।
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उठाई गई चिंताएँ:
- कानूनी चुनौती: विशेषज्ञों का तर्क है कि यह विधेयक केंद्रीय अधिनियम का खंडन करता है और इसके लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है, जिससे इसकी वैधता संदिग्ध हो जाती है।
- विपक्ष का रुख: कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सैद्धांतिक रूप से संशोधनों का समर्थन करती है, लेकिन उनके लागू होने पर संदेह करती है।
- कार्यकर्ता प्रतिक्रिया: पर्यावरण समूह इसे विज्ञान-विरोधी और राजनीतिक लोकलुभावनवाद बताते हैं, और चेतावनी देते हैं कि यह अंधाधुंध हत्याओं को बढ़ावा दे सकता है और संरक्षण कानूनों को कमजोर कर सकता है।
विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर देते हैं कि मानव-वन्यजीव संघर्ष का प्रबंधन घातक प्रावधानों के बजाय सौर बाड़, खाइयाँ, पूर्व चेतावनी प्रणाली और टिकाऊ खेती जैसे पर्यावरणीय समाधानों से किया जाना चाहिए।










