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भारत में वन संरक्षण का नया दृष्टिकोण: वन अधिकार अधिनियम और स्थानीय समुदायों की भूमिका

The Forest Rights Act empowers local communities to take part in sustainable forest management in India

आज जब विश्वभर में पर्यावरण संरक्षण के प्रयास अक्सर उपनिवेशवादी “किले मॉडल” पर आधारित होते हैं—जहाँ संरक्षित क्षेत्रों को मानव हस्तक्षेप से मुक्त रखने के लिए स्थानीय समुदायों को बाहर कर दिया जाता है—भारत एक अलग राह पर अग्रसर है। यह राह आदिवासी और पारंपरिक वनवासियों (Indigenous Peoples and Local Communities – IPLCs) के साथ उनके पारंपरिक ज्ञान और अधिकारों को मान्यता देती है।

Vanchiechie अधिकार अधिनियम (FRA), 2006: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उद्देश्य
वन अधिकार अधिनियम, 2006, जिसे FRA के नाम से 
भी जाना जाता है, भारत सरकार द्वारा एक ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के लिए लाया गया था। इस अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के पारंपरिक वन अधिकारों को उनकी मान्यता देने का मकसद था, जो पीढ़ियों से जंगलों में रहते आ रहे हैं, लेकिन जिनके अधिकारों को औपचारिक रूप से कभी मान्यता नहीं मिली थी।


FRA के 
मुख्य प्रावधान
FRA के तहत निम्नलिखित अधिकार प्रदान किए गए हैं:

स्वामित्व अधिकार: 13 दिसंबर 2005 तक खेती में उपयोग की जा रही अधिकतम 4 हेक्टेयर भूमि पर स्वामित्व का अधिकार।

A local villager managing a controlled burn in a forested area, illustrating traditional forest practices
The Forest Rights Act empowers local communities to take part in sustainable forest management in India


उपयोग अधिकार: लघु वनोपज (जैसे बांस, महुआ, शहद) के संग्रहण, चराई, और पारंपरिक संसाधनों के उपयोग का अधिकार।

राहत और विकास अधिकार: अवैध बेदखली या विस्थापन की स्थिति में पुनर्वास और बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच का अधिकार।

वन प्रबंधन अधिकार: पारंपरिक रूप से संरक्षित और प्रबंधित किए गए सामुदायिक वन संसाधनों की रक्षा, पुनर्जनन और प्रबंधन का अधिकार।

इन अधिकारों की मान्यता के लिए ग्राम सभा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो दावों की समीक्षा और अनुमोदन करती है।

सामुदायिक संरक्षण के उदाहरण: पचगांव, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के पचगांव गाँव ने FRA के तहत समुदायिक वन अधिकार प्राप्त कर 1,006 हेक्टेयर बांस के जंगल का प्रबंधन अपने हाथों में लिया। इस अभिनव पहल से गाँव ने बांस व्यापार के द्वारा आर्थिक समृद्धि प्राप्त की, स्थानीय रोजगार सृजित हुए, और बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ। यह उदाहरण यह दिखाता है कि जब स्थानीय समुदायों को अधिकार और जिम्मेदारी दी जाती है, तो वे पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास दोनों में उत्कृष्ट परिणाम दे सकते हैं।

FRA की वैश्विक महत्वपूर्णता
FRA 
एक कानूनी दस्तावेज ही नहीं है, बल्कि यह एक वैकल्पिक संरक्षण मॉडल प्रस्तुत करता है, जो मानव अधिकार और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करता है। जबकि वैश्विक जैव विविधता संकट गहराता जा रहा है, इस मॉडल का यह भारत ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।

निष्कर्ष
भारत का वन अधिकार अधिनियम उन समुदायों को मजबूत बनाता है, जो सदियों से जंगलों के साथ सह-अस्तित्व में रहे हैं। यह अधिनियम न केवल ऐतिहासिक अन्याय को सुधारता है, बल्कि यह दिखाता है कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी से पर्यावरण संरक्षण अधिक प्रभावी और न्यायसंगत हो सकता है।

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